Archit Savarni

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बेजान सी मंजिल ,बेजान सा सफर

वक्त मुझसे पूछ रहा ,
कैसे जी पाएगा तू इस दुनिया में!
जहां पर प्रीत केवल पीड़ा देती है!
खुशियां केवल गम देती है!
उम्मीदें केवल अंधेरे की ओर ले जाती है!
जिंदगी की कशमकश में फसी है रूह मेरी,
खुद की नजर से भागने का मन करता है!
पर बंदीसे  ने ऐसा जकड़ा की भाग भी नहीं सकता!
भावनाओं के उतार-चढ़ाव और भी विचलित कर रहे !
नफरत का सिलसिला जैसे सुकून से दे रहे !
कठोर होते हृदय में भावनाएं गुम हो रहे!
जैसे जिंदगी मुझसे कह रही,
तेरे साथ जीना अभी बाकी है!
कुछ और पीड़ा सहना भी बाकी है!
कुछ और घुटन और तड़पन अभी बाकी है!
चाहे जिस ओर ले जाए जिंदगी!
खुद की नजर में बड़ा बनना अभी बाकी है!
टूटे और बिखरे हृदय में, मायूसी का मंजर है!
मन का डर जैसे विष के समान मस्तिष्क में फैल रहा!
कुछ रोशनी जीवन जीने की आस दे रही थी ,
शायद वह भी बुझ गई हैं!
खुद का अस्तित्व जैसे लाश के समान बन गई है,
जो बेजान सी राह में भटक रही है!
इच्छा थी कि सफर का अंत ,मैं सुकून के साथ करूं!
जीवन एक ऐसे अंधेरे सफर में जा रहा ,
जहां पर कोई भी रोशनी की किरण नहीं दिख रही,!
केवल और केवल अंधियारा ही शेष है!!😌

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3 Comments

Vfyjgxbvxfg

30-May-2021 07:35 PM

बहुत खूबसूरत रचना

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Aliya khan

30-May-2021 09:12 AM

वाह कुमार जी क्या एहसासों को उभरा है अपने 🙏

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Apeksha Mittal

28-May-2021 04:00 PM

Waah , बहतरीन कविता सर

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